बोद्ध दर्शन का एक शूत्र वाक्य है।
"अप्प दीपो भव"।
अर्थात अपना दीपक स्वयं बनें।
कोई भी किसी के पथ के लिए सदैव मार्ग प्रशस्त नहीं कर सकता। केवल आत्मज्ञान के प्रकाश से ही हम सत्य के मार्ग पर आगे बढ़ सकते हैं।
भगवान बुद्ध ने कहा, तुम मुझे अपनी बैसाखी मत बनाना। तुम अगर लँगड़े हो, औऱ मेरी बैशाखी के सहारे चल लिए--- कितनी दूर चलोगे? मंजिल तक न पहुंच पाओगे। आज मैं साथ हूँ, कल मैं साथ न रह पाऊंगा। फिर तुम्हें अपने ही पैरों पर चलना है। मेरे साथ की रोशनी से मत चलना। क्योंकि थोड़ी देर को साथ संग हो गया है अंधेरे जंगल में। तुम मेरी रोशनी में थोड़ी देर रोशन हो लोगे, फिर हमारे रास्ते अलग अलग हो जाएंगे। मेरी रोशनी मेरे साथ होगी, तुम्हारा अंधेरा तुम्हारे साथ होगा। अपनी रोशनी पैदा करो।
अप्प दीपो भव।
अप्प दीपो भव।
जिसने देखा, उसने जाना।
जिसने जाना, वो पा गया।
जिसने पाया, वो बदल गया।
जिसने जाना, वो पा गया।
जिसने पाया, वो बदल गया।
अगर नहीं बदला तो समझो कि उसके जानने में ही कोई खोट था।
भगवान बुद्ध ने जाना तो बुद्धत्व तक पहुंचेंगे तुम नहीं। तुम भगवान बुद्ध की पूजा करने से नहीं पहुंचोगे। न ही किसी अन्य की पूजा करने से या चेला बनने से। तुम खुद जाओगे तभी पहुँचोगे।
भारत वर्ष में भगवान बुद्ध का विरोध क्यों हुआ?
भारत वर्ष में भगवान बुद्ध का विरोध क्यों हुआ?
क्योंकि तथागत बुद्ध ने चमत्कार को खारिज कर दिया। औऱ तर्क को स्थान दिया और ब्राह्मणवादी मान्यताओं को खारिज कर दिया। संसार मे सबसे पहले किसी ने ये सवाल उठाया कि जैसे अंधविश्वास, पाखण्ड, कर्मकांड, आडम्बर, इन सबका मानव विकास में कोई योगदान नहीं है। बल्कि ये मानव के विनाश का कारण बनता। भगवान बुद्ध ने आगे कहा वह ईश्वर के होने या न होने के प्रश्न को अनावश्यक बताया। ईश्वर पर निर्भर न रहकर अपने मार्ग औऱ भला खुद ही करने की शिक्षा दी है। भगवान बुद्ध के अनुसार धर्म का अर्थ ईश्वर, आत्मा, स्वर्ग-नरक, परलोक नहीं होता। बुद्ध ने वैज्ञानिक तरीके से ईश्वर, आत्मा, स्वर्ग--नरक, परलोक के अस्तित्व को ही नकारा औऱ ध्वस्त किया है। संसार भर के इतिहास में भगवान बुद्ध एक मात्र ऐसे धम्म प्रचारक हैं जो व्यक्ति को तर्क और विज्ञान के विपरीत किसी भी बात में विश्वास करने से रोकते हैं। भगवान बुद्ध कहते हैं जिसे ईश्वर कहते हैं उससे मेरा कोई लेना देना (सम्बंध) नहीं है।किसी भी बात को केवल इसलिए स्वीकार मत करो कि किसी धर्म ग्रंथ में लिखा है। इसलिए भी स्वीकार मत करो कि ये प्राचीन परम्परा है। किसी भी बात को मानने से पहले अपनी तर्क बुद्धि से परखो। अगर उचित लगे तो उसका अनुकरण करो, नहीं तो त्याग दो। भगवान बुद्ध के जैसी स्वतंत्रता किसी भी अन्य धर्म ने नहीं दी है। भगवान बुद्ध ने स्वयं को मार्ग
दर्शक कहा है। और कभी भी विशेष दर्जा नहीं दिया। बुद्ध धम्म में नैतिकता पर ज्यादा जोर दिया है।
--अन्य धर्म में जो स्थान ईश्वर का है, वही स्थान बुद्ध धम्म में नैतिकता का है।भगवान बुद्ध का कहना है---अप्प दीपो भव। अर्थात अपना दीपक स्वयं बनो।
--अन्य धर्म में जो स्थान ईश्वर का है, वही स्थान बुद्ध धम्म में नैतिकता का है।भगवान बुद्ध का कहना है---अप्प दीपो भव। अर्थात अपना दीपक स्वयं बनो।
धन्यवाद।
संग्रहकर्त्ता उमेद सिंह सिंघल।
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