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Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
दुविधा को कर दूर धनी को सेव रे।
सुमर, सुमर सत्तनाम चिरन्जी जीव रे।
खांड नाम बिन मूल घोल क्यूँ ना पीव रे।।
खांड नाम बिन मूल घोल क्यूँ ना पीव रे।।
काया में नहीं नाम धनी के हेत का।
बिना नाम किस काम, मटीला डला रेत का।।
बिना नाम किस काम, मटीला डला रेत का।।
ऊंची कचहरी बैठे, जो न्याय चुकावते।
गए माटी में मिल, नजर नहीं आवते।।
गए माटी में मिल, नजर नहीं आवते।।
तूँ माया धन धाम देख मत फूल रे।
चार दिनों का रंग मिलेगा धूल रे।।
चार दिनों का रंग मिलेगा धूल रे।।
बार बार ये देह नहीं है बीर रे।
चेता जा तो चेत, न्यू कहत कबीर रे।।
चेता जा तो चेत, न्यू कहत कबीर रे।।
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