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Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
एक हरि के नाम बिना प्रलय में धक्के खा भाई।
एक गुरु के विश्वास बिना, कहो किस ने मुक्ति पाइ।। यो संसार सपन का मेला, यो मेला भरता यहाँ ही।
एकला आया एकला जागा, संग साथी कोए है नाहीं।।
धर्म राज कै न्याय पड़े, लेखा हो राई राई।
जो पूंजी पूरी ना पावै, सज़ावार होगा भाई।।
पूंजी घटसी तूँ नर पिटसी, मार पड़े भूतां भाई।
तूँ दरगाह में ऐसे नाचै, जैसे मछली जल माहीं।
नाथ गुलाब गुरु मिले पूरे, हमने सुन सोधि आई।
भानीनाथ शरण सद्गुरु की, निर्भय जाप जपो भाई।।
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