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Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
चित्त का थाल ले गुरु का करूँ मैं आरता,
चरणां नै धो धो पिवसां।।
अगड़ पवित्र म्हारै बगड़ पवित्र,चरण टिकत बैकुंठ गए।
तीन लोक के करतमकर्ता, आंगन म्हारै झुक रहे।।
तीन लोक के करतमकर्ता, आंगन म्हारै झुक रहे।।
पलकों से गुरु के चँवर ढुलाऊँ, नैना से चरण छुवाईयाँ।
नैनां के बीच बसे म्हारे सतगुरु, हिवरे में सेज बिछाइयाँ।।
तन अपने की तोशाक बनाऊं,सतगुरु तलै बिछाइयाँ।
तन मन धन सब अर्पण करदूँ, बदला तै लिया ये न जाइया।।
शीश काट गुरु की पूजा चढाऊँ,मुक्ता सा माल लुटाइयाँ।
जबर काल का जोर हटाया, यम की त्रास मिटाइयाँ।।
तीर्थ व्रत सब फीके लागें, थारी आश मनाइयाँ।
जितम्हारेसतगुरु केचरणटिकत हैं, म्हारा ए भरम भगाइयाँ।।
गरीब नवाज सतलोक पठाए,पूर्ण ब्रह्म परसाइयाँ।
नाथ गुलाब म्हारे सतगुरु रीझे, सत्त शब्द दरसाइयाँ।।
नाथ गुलाब म्हारे सतगुरु रीझे, सत्त शब्द दरसाइयाँ।।
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