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Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
पापों का फल मिलता, ना सोचा इस ओर
ईश्वर सेवा का करके जग में, वादा तुं आया।
सुंदर ये मानव चोला, तुझको थमाया।
कर्म किये हैं दूषित, क्यूं बन बैठा तुं चोर।।
विषय वासनाओं में ये जीवन गंवाया है।
अवश्यमेव भोगकृतम गीता में बताया है।
अंधकार में जीता, न भाई तुझको भोर है।।
अवश्यमेव भोगकृतम गीता में बताया है।
अंधकार में जीता, न भाई तुझको भोर है।।
बचपन गंवाया तूने, जवानी गंवाई है।
छल कपट की नीति, तेरी मौत बन कर आई है।
आखरी विदाई का ढंग, बैठे किस और।।
छल कपट की नीति, तेरी मौत बन कर आई है।
आखरी विदाई का ढंग, बैठे किस और।।
खाना भी जाना तूने,सोना भी जाना है।
उसीको न जाना जिसके, पास तुझे जाना है।
सावन बरसा अंजलि, न झूमा मन का मोर।।
उसीको न जाना जिसके, पास तुझे जाना है।
सावन बरसा अंजलि, न झूमा मन का मोर।।
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