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Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
कलह कल्पना मेट कै, चरणों चित्त ले री।।
पिया का मार्ग कठिन है, खांडे की धारा।
डगमग हो तो गिर पड़े नहीं उतरे पारा।।
पिया का मार्ग सुगम है, तेरी चाल अनेड़ा।
नाच न जाने बावली, कह आंगन टेढा।।
जो तुं नाचन निकसी, फिर घूंघट कैसा।
घूंघट के पट खोलदे, मत करै अंदेशा।।
चंचल मन इत उत फिरै, पति व्रता जनावै।
सेवा लागी नाम की, पिया कैसे पावे।।
पिया खोजत ब्रह्मा थके, सुर नर मुनि देवा।
कह कबीर विचार कै, करो सतगुरु सेवा।।
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