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Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
हीरा पाया गाँठ गठियाया।
बार-२ फिर क्यों खोलै।।
हल्की थी जब चढ़ी तराजू, पूरी भइ फिर क्यों तोलै।
सूरत कलारी भइ मतवारी, मदवा पी गई बिन तोलै।।
हंसा पावै मान सरोवर फिर ताल तलैया क्यों डोलै।
तेरा साईं है तुझ भीतर, बाहर नैना क्यों खोलै।।
कह कबीर सुनो भइ साधो, साहब मिल गया तिल ओल्है।
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