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Kabir Ke Shabd |
कबीर के शब्द
फकीरी में मजा जिस को, अमीरी क्या बिचारी है।
सदा एकांत में बाशा, याद पृभु की प्यारी है।
नहीं नोकर किसी जन के, न मन मे लालसा धन की।।
सबुरी धार कर मन मे,
मिले सत्संग सन्तों का, चले नित ज्ञान की चर्चा।
पिछाना रूप अपने को, भेद सब दूर तारी है।।
सभी जग जीव से प्रीति, बराबर मान अपमाना।
वो ब्रह्मानन्द पूर्ण में, मगन दिन रैन सारी है।।
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