तुम सुनियो सन्त सुजान, गर्व नहीं करना रे।।चार दिनों का रैन बसेरा, आखिर तोकु मरना है।।तूँ जाने मेरी न्यू ए निभेगी।हरदम लेखा भरना है।।खाले पिले विलसले रे हंसा।जोड़ जोड़ नहीं धरना रे।।दास गरीब सकल में साहिब।नहीं किसी से अड़ना है।।गरीबदास मन धरै न हंसा।अधर धार पंथ कबीरा रे।।
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